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क्या इससे फर्क पड़ रहा है?

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इफिसियों 4:18,19 क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं। 19 और वे सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें।

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क्या इससे फर्क पड़ रहा है?


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जब यीशु पहली सदी के इज़राइल की धूल भरी सड़कों पर चला, तो उसने कुछ शक्तिशाली बातें की और कही। अनगिनत जीवन को छुआ और उन्हे बदल दिया – और यही बात है। जब, हम यीशु से मिलते हैं, तो वह मुलाकात हमारे जीवन को बदलने के लिए होती है।

यह हंसी कि बात है कि एक ओर हम सभी एक बेहतर जीवन चाहते हैं, लेकिन दूसरी ओर, हम उन चीजों को छोड़ना नहीं चाहते जो हमारे जीवन को बर्बाद कर रही हैं, हमें बदलने से रोक रही हैं, हमें बढ़ने से रोक रही हैं।

यीशु के पास हमारे पाप, आपके और मेरे पाप के बारे में कहने के लिए कुछ अविश्वसनीय बातें हैं। कभी-कभी उनके शब्द हमारे हृदय में प्रवेश कर जाते हैं। और कई बार हम अपने स्वयं के नुकसान के लिए, उन्हे नहीं मानते ।

मैं नहीं जानता कि आप इससे कितना परिचित हैं। आप  ईमानदारी से इन सवालों का जवाब कैसे देंगे: कि यीशु के साथ मेरी मुलाकात मेरे जीवन में कितना अंतर ला रही है? मैं कितना रूपांतरित हो गया हूं? मैं कितना बदल गया हूँ – क्या मेरे जीवन में उसके प्रभाव के कारण मैं बदल रहा हूँ – 

उन से जिन्होंने वास्तव में मसीह को अपने हृदय में नहीं आने दिया, प्रेरित पौलुस यह कहता है:

इफिसियों 4:18,19 क्योंकि उनकी बुद्धि अन्धेरी हो गई है और उस अज्ञानता के कारण जो उन में है और उनके मन की कठोरता के कारण वे परमेश्वर के जीवन से अलग किए हुए हैं। 19 और वे सुन्न होकर, लुचपन में लग गए हैं, कि सब प्रकार के गन्दे काम लालसा से किया करें। 

यह इस सवाल का एक बहुत ही हानिकारक निचोड़ है – ईमानदारी से, यह हम में से प्रत्येक को खुद से पूछने की ज़रूरत है, यह किस हद तक मेरा वर्णन करता है? यह कहा गया है कि चर्च एक अस्पताल की तरह है। कुछ रोगी ठीक हो जाते हैं और कुछ . नहीं।

यीशु आपके जीवन में कितना बदलाव ला रहा है?

यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज  आपके लिए…।