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परमेश्वर को प्रसन्न करना

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भजन संहिता 19:14 मेरे मुँह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्‍वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले!

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परमेश्वर को प्रसन्न करना


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जीवन स्वयं को प्रसन्न करने और अन्य लोगों को प्रसन्न करने के बीच एक निरंतर संघर्ष प्रतीत होता है। कभी-कभी हमें वह सही संतुलन मिल जाता है और कभी नहीं। और जब यह संतुलन बिगड़ जाता है, तो जीवन में उथल पुथल मच जाती है।

तो, हर सुबह जब आप बिस्तर से उठते हैं, तो आप किसे प्रसन्न करने के बारे में सोचते हैं? खुद को , दूसरों को, या परमेश्वर को… या शायद आप इस बारे में ज्यादा नहीं सोचते।

वर्षों के, अनुभव ने मुझे इस निष्कर्ष पर पहुँचाया है कि इसके बारे में अधिक ना सोचना इतनी अच्छी नीति नहीं है। क्योंकि जब हम इस बारे में नहीं सोचते हैं, तो जीवन हाथ से निकलता जाता है।

हममें से अधिकतर स्वयं को प्रसन्न करने के बारे में सोचते हैं। चाहे फिर उसकी कीमत दूसरों के साथ और निश्चित रूप से परमेश्वर के साथ हमारे संबंधों की हानि क्यों ना हो। लेकिन कुछ लोग, अपना जीवन अन्य लोगों को खुश करने की कोशिश में, उनकी मांगों को पूरा करें में बिता देते हैं।  किसी भी तरह से, यह जीने का एक अच्छा तरीका नहीं है।

यहाँ राजा दाऊद ने इसे कुछ इस तरह परमेश्वर के सामने अपनी प्रार्थना में रखा:

भजन संहिता 19:14 मेरे मुँह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्‍वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करनेवाले!

दाऊद परमेश्वर के मन के अनुसार मनुष्य था। और उसका हृदय, उसकी प्राथमिकता, परमेश्वर को प्रसन्न करना था। जिसमें बलिदान शामिल है। इसमें लोगों को क्षमा करना शामिल है। जब आप किसी और को दो चार बातें सुनाना चाहते हों तो उस समय अपने आप को चुप कर लेना शामिल है। वास्तव में, इसमें वे बहुत सी चीजें शामिल हैं जो हम स्वाभाविक रूप से नहीं करना चाहते हैं।

तो दाऊद उन कामों को क्यों करना चाहता है? क्योंकि हे यहोवा, तू मेरी चट्टान है, जो मुझे छुड़ाता है।

यही उसकी प्रेरणा है। परमेश्वर कितनी बार आपकी चट्टान रहे हैं? कितनी बार उसने आपको बचाया है? अपना जीवन जियें, लेकिन सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, परमेश्वर को खुश करने के लिए।

यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज …आपके लिए…।