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शास्त्र… या नहीं

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यिर्मयाह 17:5,6 यहोवा यों कहता है, श्रापित है वह पुरुष जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है। 6 वह निर्जल देश के अधमूए पेड़ के समान होगा और कभी भलाई न देखेगा। वह निर्जल और निर्जन तथा लोनछाई भूमि पर बसेगा।

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शास्त्र… या नहीं


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चीजों की सतह पर, कई बार ऐसा लगता है कि परमेश्वर का वचन और समकालीन विचारों के बीच टकराव महसूस होता है । और जब ऐसा होता है, तो आपके और मेरे पास यह विकल्प रह जाता है कि हम किसका पालन करें।

यह एक ऐसा संघर्ष है जिसका हम सभी सामना करते हैं। परमेश्वर के वचन और सामाजिक सोच और नैतिकता के बीच बहुत सारे टकराव हैं, और यहाँ आप और मैं हर रोज इन दोनों का सामना करते हैं।

पहली बात तो यह जान लेनी चाहिए कि इसमें कुछ भी नया नहीं है। अक्सर हम ऐसा व्यवहार करते हैं जैसे कि यह केवल हमारी पीढ़ी के साथ ही हुआ हो। लेकिन परमेश्वर के लोगों को प्राचीन काल से सताया गया है, इसका कारण यह है कि परमेश्वर का प्रेम, उनके तरीके, उनकी सच्चाई सभी इस दुनिया में बुराई के खिलाफ खड़े रहे हैं। इसलिए उन्होंने येशु को सूली पर चढ़ाया। यही कारण है कि मसिहियों को तब से सताया गया है और यहां तक कि उन्हें शहीद भी किया गया है।

और बहुत पहले पुराने नियम के समय में, जब इस्राएल ने गलत दिशा को चुना था, तो यही बात परमेश्वर ने उनसे कही थी – ध्यान से सुनिए । 

यिर्मयाह 17:5,6 यहोवा यों कहता है, श्रापित है वह पुरुष जो मनुष्य पर भरोसा रखता है, और उसका सहारा लेता है, जिसका मन यहोवा से भटक जाता है। वह निर्जल देश के अधमूए पेड़ के समान होगा और कभी भलाई न देखेगा। वह निर्जल और निर्जन तथा लोनछाई भूमि पर बसेगा।

गलती करना बहुत आसान है, जैसा कि इज़राइल ने की थी जब वह लिखा गया था, परमेश्वर के वचन पर सांसारिक तथाकथित “ज्ञान” के पक्ष में। लेकिन उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश उपदेशक चार्ल्स स्पर्जन ने कहा था : पवित्र आत्मा इंजील के रथ पर सवारी करती है न कि आधुनिक विचार के वाहन में।

यह परमेश्वर का ताज़ा वचन है। आज  आपके लिए…।